लोक हित मे लक्ष्य प्राप्ति के लिए तप और त्याग को जीवन के नियमों का मूल मंत्र बताया- सुजीत घिदौडे ।
रायपुर । नया रायपुर सरपंच संघ अध्यक्ष श्री सुजीत घिदौडे ने अपने एक लेख में लिखा है कि, ” लोक हित मे लक्ष्य प्राप्ति के लिए तप और त्याग की आवश्यकता को जीवन के नियमों का मूल मंत्र बताया है।” उन्होनें लिखा है कि – इस संसार मे प्रत्येक मनुष्य व प्रत्येक प्राणी का अपना एक लक्ष्य, ध्येय, उद्देश्य होना आवश्यक है। क्योंकि बिना लक्ष्य के मंजिल को हासिल कर पाना या अपने उन संकल्पित उद्देश्यों को पूरा कर पाना असम्भव और केवल स्वप्न मात्र होगा।
संसार मे हर प्राणी का अपना एक उद्देश्य होता है और वह अपने जीवन के सभी साधित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु दिन- प्रतिदिन मेहनत करता है, बिना संघर्ष और मेहनत के हम एक कदम तक नही चल पाते है तो यह बात तो अपने ध्येय को लोकहित में साधने की है।
लक्ष्य प्राप्ति के लिए तप और त्याग क्यों आवश्यक होती है ?
केवल अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किये जाने वाले क्रिया को तप या त्याग नही कहते है, तप और त्याग मानव जीवन मे लागू होने वाले वह नियम है जो संसार के प्रत्येक प्राणियों के हित तथा उनके सुख के लिए किये जाने वाली गहरी साधना होती है।
मानवीय आत्मा की तृप्ति हेतु मानवीय सामर्थ्य की विकास तथा तप की कठिन परिश्रम से प्राप्त संसाधनों का उपयोग लोक कल्याण में होना चाहिए।
अपने तप का अभिमान करना उस तपस्या, त्याग का अपमान है- जो आपने अपने जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अथक मेहनत और प्रयास किये है। इसलिए कभी भी मानव को अपने तप पर अभिमान नही करना चाहिए।
जिस प्रकार लंका पति रावण का पतन केवल मात्र अपने कठिन तप,त्याग और शक्तियो का अंहकार रूपी बादल के घने होने के कारण हुआ और वह भी क्षणिक आत्मतोष के लिए पर स्त्री पर बुरी नियत के चलते उनके महान प्रतापी और त्याग आजीवन का संघर्ष, शौर्य, सम्पदा, और देवतुल्य पूजना आज अभिमान के चलते सर्वदा के लिए चूर चूर हो गया ।
कभी अपने आपको स्वयं ही महान न मान बैठे इस लोक में बहुत से विद्वान है जो कही न कही अभिमान करने वाले तपस्वी का पतन का कारण और माध्यम बन जाता है।